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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।

अथवा
"निबन्ध आधुनिक युग की देन है।' इस कथन परिप्रेक्ष्य में निबन्ध के विकासात्मक इतिहासपर प्रकाश डालिए

उत्तर -

हिन्दी निबन्ध आधुनिक युग की देन है। आधुनिक युग में ही निबन्धों का विकास हुआ है और धीरे- धीरे अब निबन्ध पर्याप्त विकसित हो गया है। आज अनेक उच्चकोटि के और शीर्षस्थ निबन्धकार साहित्य लगत में अपना प्रभुत्व जमाए हुए हैं। ऐसी स्थिति में यह देखना अनिवार्य हो जाता है कि हिन्दी निबन्ध के विकास की रूप-रेखा किस प्रकार की है और निबन्ध किस रूप में सामने आये तथा उनका रूप आज क्या हो गया है। उपन्यास एवं कहानी के समान निबन्ध की रचना हिन्दी में अंग्रेजी के प्रभाव के अन्तर्गत हुई है। आधुनिक समय में निबन्ध से जिस प्रकार की रचना का बोध होता है उस तरह ही रचना का हिन्दी या संस्कृत में आधुनिक युग से पहले बोध नहीं था निबन्ध व्यक्ति की महत्ता स्वीकार करने वाले समाज की अनुपम रचना है। यह गद्य की आधुनिक विधा है। यूरोप में फ्रान्सीसी लेखक मार्टिन निबन्ध के जन्मदाता माने जाते हैं। अंग्रेजी भाषा में बेकन को निबन्ध का पहला लेखक माना गया है। हिन्दी में गद्य साहित्य का विकास 19वीं शताब्दी के आरम्भ में ही होने लगा था 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जब भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा हिन्दी गद्य का स्वरूप निश्चित हो गया तभी निबन्धों का समुचित और क्रमिक विकास सम्भव हो सका। हिन्दी के निबंन्ध साहित्य को हम चार भागों में बाँट सकते हैं-

भारतेन्दु युग - गद्य की अन्य विधाओं के समान निबन्ध का आरम्भ 19 वीं शताब्दी के अन्त में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और उनके साथियों द्वारा हुआ। भारतेन्दु ने कुछ व्यंग्यात्मक निबन्ध लिखे हैं किन्तु उनके निबन्ध अधिकतर वर्णनात्मक है। वर्णनात्मक निबन्धों में यात्रावृत अधिक हैं। भारतेन्दु युग के सर्वश्रेष्ठ निबन्धकार है- बालकृष्ण भट्ट और प्रतापनारायण मिश्र इन दोनों निबन्धकारों की तुलना प्रायः अंग्रेजी भाषा के निबन्धकार एडीसन' और 'स्टील' से की गयी है। निबन्ध की साहित्यिक विशेषताएँ स्वच्छन्द निबन्ध चिन्तन, आत्मीयता शैली, आडम्बरहीनता, निजी व्यक्तित्व को गहरी छाप आदि इन दोनों लेखकों में भरपूर मात्रा में है। मुहावरों पर और लोकोक्तियों का इन लेखकों ने जमकर प्रयोग किया है। गोस्वामी के निबन्ध मुख्यतः व्यंग्यात्मक है। उन्होंने धार्मिक, सामाजिक कुरीतियों का विरोध व्यंग्य के माध्यम से किया है। बाल मुकुन्द गुप्त भी व्यंग्यात्मक निबन्ध के लेखक हैं। 'शिवशम्भू के चिट्ठे' नामक उनकी निबन्धमाला उन दिनों खूब लोकप्रिय हुई थी। बद्रीनारायण प्रेमधन में अलंकृत शैली का प्रयोग किया है।

प्रमुख विशेषताएँ - इस युग के निबन्धों की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(1) इस काल के निबन्धों में व्याख्या सौन्दर्य नहीं मिलता है तथा वाक्य विन्यास में भी व्याकरण की अशुद्धियाँ पाई जाती हैं। वास्तव में निबन्ध-निबन्ध न होकर लेख मात्र हैं।

(2) डॉ. सत्येन्द्र ने इस काल के निबन्ध साहित्य को पत्रकला से सम्बन्धित माना है। उनके अनुसार ये सभी निबन्ध साधारण कोटि के हैं और किसी सामयिक समस्या पर टिप्पणियाँ प्रस्तुत करते हुए लगते हैं।

(3) अनेक सामान्य विषयों पर निबन्ध लिखे गये हैं जैसे भौंहें, आँख, कान, नाक, बात, आप और वृद्ध आदि।

(4) इस काल के निबन्धों की सामाजिक जीवन सम्बन्धी, देश की परम्परा सम्बन्धी तथा पर्व और त्यौहारों से सम्बन्धित निबन्ध लिखे गये हैं। ये निबन्ध ग्रन्थ के रूप में प्रकाशित नहीं हुए हैं केवल पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। इस काल के निबन्धों में समाज सुधार और देशभक्ति का पुट है तथा हास्य विनोद की झलक भी देखने को मिलती है। वस्तुतः निबन्ध के वास्तविक विकास को प्रस्तुत करने में इस युग का योगदान कम नहीं है।

द्विवेदीयुगीन निबन्ध साहित्य -  बीसवीं शताब्दी के प्रथम बीस-पच्चीस वर्ष श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर द्विवेदी युग कहलाता है। इस युग में निबन्ध रचना जारी रही किन्तु पिछले युग की तुलना में कम इस युग में गोविन्द नारायण मिश्र ने अलंकृत शैली का अतिवादी रूप प्रस्तुत किया। यह शैली नितान्त बनावटी और पूर्ण चमत्कारी थी। उनकी शैली का किसी ने अनुकरण नहीं किया। सरदार पूर्ण सिंह ने कुल तीन-चार निबन्ध लिखे किन्तु पर्याप्त प्रसिद्धि प्राप्त की। उन्नत सबसे प्रसिद्ध निबन्ध 'मजदूर और प्रेम' है। पूर्ण सिंह के निबन्ध भावात्मक निबन्ध के सुन्दर उदाहरण हैं। माधव प्रसाद मिश्र ने भी अच्छे भावात्मक निबन्ध लिखे हैं। द्विवेदी जी ने कुछ व्यंग्यात्मक और भावात्मक निबन्ध लिखे हैं किन्तु मुख्यतः उनके निबन्ध विवरणात्मक हैं जिनका उद्देश्य सूचना प्रधान है। श्री चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने भी कुछ व्यंग्यात्मक निबन्ध लिखे थे। पद्यसिंह शर्मा के निबन्धों में व्यंग्यात्मकता भी है और वैयक्तिकता की छाप भी है।

वैशिष्ट्य निरूपण - द्विवेदी युग के निबन्धों में सामान्य रूप से जिन्दादिली का स्थान गम्भीरता ने ले लिया। भारतेन्दु युग के निबन्ध का विषय जीवन है, इस युग के निबन्ध का विषय ज्ञान है। भारतेन्दु युग के निबन्ध 'वार्तालाप हैं। इस युग के निबन्धों का विषय स्पष्ट और स्वरूप विवेचनात्मक है। भारतेन्द्र युग के निबन्ध चिन्तन के स्थान पर युग के निबन्धकारों में चिन्तन क्रम और विचार संयम के दर्शन होते

रामचन्द्र शुक्ल एवं अन्य लेखक - द्विवेदी युग के बाद के निबन्धकारों में सबसे महत्वपूर्ण श्री शुक्ल है। शुक्ल जी के निबन्धों की संख्या अधिक नहीं है। उनके आलोचनात्मक निबन्धों में विचार गम्भीरता काफी है. निबन्ध की आत्मीयता या स्वच्छन्दता के दर्शन कहीं-कहीं ही होते हैं। मनो विकास सम्बन्धी उनके निबन्ध अधिक सरल और उत्तम हैं। इन रचनाओं में विचार के साथ-साथ व्यंग्य के छीटे भी हैं और प्रकृति भाव प्रधान चित्रण भी हैं। शुक्ल जी भारतीय प्रकृति के प्रेमी थे और उन्होंने स्थान-स्थान पर प्रकृति का वर्णन मुग्ध होकर किया है। स्थान-स्थान पर व्यंग्य के साथ विनोद भी उनके निबन्धों में दिखलाई देता है। हिन्दी के दूसरे प्रसिद्ध आलोचक गुलाबराय ने गम्भीर आलोचनात्मक लेखों के साथ हास्य-व्यंग्य प्रधान निबन्ध भी लिखे हैं। डॉ. रघुवीरसिंह ने ऐतिहासिक स्थलों को आधार बनाकर सुन्दर भावात्मक निबन्धों की. रचना की है।

शुक्ल जी के बाद दूसरे महत्वपूर्ण निबन्धकार है श्री गुलाबराय उन्होंने द्विवेदी युग में ही निबन्ध रचना आरम्भ कर दी थी किन्तु उनकी महत्वपूर्ण रचना शुक्ल के युग में सामने आयी। मेरी असफलताएँ संकलन में उनमें निजी जीवन से सम्बन्धित निबन्ध संकलित हैं। इन निबन्धों में हास्य व्यंग्य और शब्द क्रीड़ा की प्रधानता है। बिहार के लेखक शिवपूजन सहाय भी अपने समय के अच्छे लेखक थे। सामान्य विषयों पर उन्होंने रोचक निबन्ध रचना की थी। उनकी शैली के दो रूप मिलते हैं दीर्घ समासान्त पदावली वाली शैली और साधारण व्यावहारिक रूप वाली शैली।

शुक्ल जी के बाद के निबन्धकारों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का नाम सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। निबन्ध की सजीवता, रोचकता और आत्मीयता को उन्होंने पूरी तरह से ग्रहण किया। 'अशोक के फूल' उनके निबन्धों का पहला संग्रह है। इसके बाद 'कल्पता, कुटज' आदि उनके निबन्ध संग्रह प्रकाशित हुए हैं। द्विवेदी जी भारतीय साहित्य और संस्कृति के पण्डित हैं, किन्तु उनका पाण्डित्य निबन्धों में अत्यन्त रूप में प्रकट हुआ है।

राहुल सांकृत्यायन अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के विद्वान् थे 'तुम्हारी कसम' और दिमागी गुलामी में संकलित उनके निबन्धों में ओजपूर्ण शैली में रूढ़ि तथा अन्धविश्वासों का खण्डन है। जैनेन्द्र कुमार ने अपनी प्रसिद्ध वक्र शैली में कुछ चिन्तन प्रधान निबन्ध लिखे हैं।

स्वातन्त्र्योत्तर निबन्ध साहित्य - स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी निबन्ध की पहली पीढ़ी के लेखक हैं- देवेन्द्र सत्यार्थी, विद्यानिवास मिश्र, प्रभाकर माचवे, रामवृक्ष बेनीपुरी आदि।

देवेन्द्र सत्यार्थी का अपना विषय है लोक साहित्य उन्होंने भारत के अधिकांश प्रान्तों की यात्रा करके लोक साहित्य का संकलन किया और उन्हें आधार बनाकर निबन्धों की रचना की है। उनके निबन्धों के संकलन है - 'धरती गाती है', 'बेला फूले आधी रात', 'बाजत आवे ढोल आदि विद्यानिवास मिश्र हजारी प्रसाद द्विवेदी की परम्परा के लेखक हैं। द्विवेदी जी ने यहाँ सांस्कृतिक परम्परा को अपनी आधारभूमि बनाया है वहीं विद्यानिवास मिश्र ने लोक जीवन को उनकी भाषा शैली में लोक मानस और सम्बन्धित जीवन की मिठास मिलती है। प्रभाकर माचवे निबन्धों का संग्रह 'खरगोश के सींग हैं। उन्होंने सामान्य विषयों पर चमत्कारिक बकवास के रूप में निबन्ध लिखे हैं। रामवृक्ष बेनीपुरी भावात्मक निबन्ध लेखक है। उन्होंने प्रकृति सौन्दर्य तथा अन्य विषयों पर प्रवाहपूर्ण शैली में निबन्ध रचना की है। रामधारी सिंह दिनकर ने भी ओजपूर्ण तथा प्रवाहपूर्ण शैली में रचना की है।

स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी निबन्ध साहित्य की दूसरी पीढ़ी के प्रमुख है हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, रविन्द्र नाथ त्यागी, कुबेरनाथ राय, शिवप्रसाद सिंह आदि। परसाई, जोशी और त्यागी व्यंग्य लेखक है। जिनमें परसाई सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। परसाई ने सामाजिक, राजनैतिक विषयों पर निबन्ध रचना की है, वह बहुत लोकप्रिय है। उसमें 'सदाचार का ताबीज 'सुनो भाई साधो' और अन्त में 'निठल्ले की डायरी' आदि अनेक निबन्ध संकलन प्रकाशित हुए हैं। शरद जोशी और रवीन्द्रनाथ त्यागी भी व्यंग्य लेखक है। कुबेरनाथ राय ने हजारी प्रसाद द्विवेदी की परम्परा बढ़ायी है। शिवप्रसाद सिंह के निबन्धों में विचार की गम्भीरता अधिक है।

उपर्युक्त विवेचन में केवल प्रमुख लेखकों का विवरण ही उपस्थित किया गया है। हिन्दी में प्रायः आलोचना और निबन्ध में कम भेद किया जाता है और सभी आलोचकों को निबन्ध लेखक भी माना जाता है। यह सम्भव है कि प्रसिद्ध आलोचकों ने कभी-कभी कुछ निबन्ध भी लिखे हों, किन्तु उससे वे निबन्ध लेखक नहीं बन जाते हैं। नन्द दुलारे वाजपेयी, डॉ० नगेन्द्र, श्यामसुन्दरदास आदि ऐसे ही आलोचक हैं, निबन्धकार नहीं। हिन्दी में आलोचना की तुलना में निबन्ध का विकास कम हुआ है। निबन्ध की मुख्य विशेषता विषय की आत्मपरकता और शैली की आत्मीयता है। इस तरह की निबन्ध रचना हिन्दी में अधिक है। आधुनिक हिन्दी साहित्य के 100 वर्षों में इस दृष्टि से 15-20 निबन्धकारों के नाम ही उल्लेखनीय है।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी भारतीय संस्कृति और इतिहास के पुजारी हैं। यह बात उनके निबन्ध साहित्य में भी देखी जा सकती है। 'अशोक के फूल' 'कल्पलता विचार और वितर्क जैसे निबन्ध संग्रहों में द्विवेदी जी के सांस्कृतिक दृष्टिकोण को देखा जा सकता है। द्विवेदी जी के निबन्धों की भाषा में सर्वत्र उनका व्यक्तित्व झाँकता दिखाई देता है। यदि एक ओर उनकी भाषा में संस्कृति वैभव है तो दूसरी ओर जन साधारणोपयोगी और सुबोधता विद्यमान हैं। वस्तुतः द्विवेदी जी के सभी निबन्ध उनका रचनात्मक प्रतिभा, गम्भीर अध्ययन और प्रगाढ़ पाण्डित्य के सूचक हैं।

जैनेन्द्र कुमार के निबन्ध अधिकतर दार्शनिक विषयों पर है। डॉ. नागेन्द्र ने मुख्य रूप से साहित्यिक विषयों पर लेखनी उठायी है। उनके निबन्ध विचार और विवेचन', 'विचार और विश्लेषण', 'विचार और अनुभूति आदि निबन्ध संग्रहों से प्रकाशित हुए हैं।

डॉ. देवराज के निबन्ध दृष्टि की सूक्ष्मता और विचारों की मौलिकता के लिए प्रसिद्ध है। इन निबन्धकारों के अतिरिक्त शान्तिप्रिय द्विवेदी, धीरेन्द्र वर्मा, डॉ. सत्येन्द्र डॉ. सहल, अज्ञेय, डॉ0 सरनाम सिंह शर्मा, डॉ. चन्द्रबली पाण्डेय, प्रकाशचन्द्र गुप्ता, राहुल सेठ गोविन्ददास, डॉ. रॉगेय राघव और नामवरसिंह आदि के निबन्ध भी विशेष महत्व रखते हैं। इनमें अज्ञेय के निबन्ध साहित्यिक अधिक हैं तो उनमें गम्भीर चिन्तना का पुट भी पर्याप्त मात्रा में विद्यमान है शान्तिप्रिय द्विवेदी की निबन्धात्मक रचनाएँ संचारिणी सामयिकी, युग और साहित्य, परिब्राजक की यात्रा और धरातल आदि है। डॉ. सत्येन्द्र और डॉ. सरनाम सिंह के निबन्ध समीक्षा प्रधान अधिक हैं। इन विद्वानों के निबन्धों में साहित्य की समस्याओं का विवेचन तो किया ही गया है। प्रमुख कवियों और लेखकों आदि के साहित्य का मूल्यांकन भी गम्भीर विवेचनात्मक शैली में किया गया है। इस प्रकार कह सकते हैं कि हिन्दी निबन्ध साहित्य पर्याप्त पुष्ट और समृद्ध है।

हिन्दी में जो निबन्ध साहित्य लिखा जा रहा है, वह न केवल विषय की दृष्टि से विविधात्मक है, अपितु शैली और गम्भीर चिन्तना की दृष्टि से भी विशेष महत्व रखता है। वर्तमान युग के निबन्धों में एक ओर तो गुलाबराय की परम्परा मिलती है दूसरे और रामचन्द्र शुक्ल की। हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने जिस सांस्कृतिक परम्परा कथा सूत्रपात किया था उसका अच्छा निर्वाह विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में मिलता है। यद्यपि द्विवेदी जी के निबन्ध व्यंग्य और विनोद को साथ-साथ लेकर चले, किन्तु फिर भी उनमें सांस्कृतिक दृष्टिकोण ही प्रमुख है। जहाँ तक शान्तिप्रिय द्विवेदी के निबन्धों का प्रश्न है उनके सम्बन्ध में डॉ. रामकुमार वर्मा की यह टिप्पणी विशेष महत्व रखती है शान्तिप्रिय द्विवेदी जी ने अपने बन्धनों की पृष्ठभूमि न तो संस्कृत साहित्य से ली और न ही अंग्रेजी साहित्य से ली है। उन्होने अपनी मननशीलता में ही अपने बौद्धिक स्तर में ही आलोचना के आदर्श स्थापित किये हैं। लेखक ने अपना हृदय पिघलाकर उन आदर्शों को प्राप्त किया है। डॉ. रामविलास शर्मा के निबन्धों को नयी चेतना और नया रूप प्रदान किया है। उनकी वाणी विवेचना की अपेक्षा खोज को अधिक धारण किये हुए है। डॉ. शर्मा के निबन्ध प्रगति और परम्परा', 'संस्कृति और साहित्य' तथा 'लोकजीवन और साहित्य जैसी कृतियों में संग्रहीत है। अज्ञेय ने अपने लेखन में चिन्तन दर्शन को प्रमुख स्थान दिया है। उनके निबन्ध साहित्य से सम्बन्धित है। यद्यपि अपवाद स्वरूप उन्होंने कुछ ऐसे निबन्ध भी लिखे हैं जो प्राचीन रचनाकारों के मूल्यांकन से जुड़े हुए हैं। स्वर्गीय मोहन राकेश के सांस्कृतिक निबन्ध भी पुस्तकाकर रूप में प्रकाशित हो चुके हैं।

कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि हिन्दी निबन्ध साहित्य आज पर्याप्त प्रगति कर चुका हैं और उनकी यह प्रगति निराशाजनक नहीं है। भविष्य में और अधिक अच्छे निबन्धों के सृजन की आशा लगाना व्यर्थ न होगा।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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